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अफगानिस्तान तक पहुंचेगा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा: CPEC का भारत पर क्या पड़ेगा असर?

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बीजिंग: चीन का महत्वाकांक्षी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) प्रोजेक्ट अब अफगानिस्तान तक विस्तार पाने जा रहा है। इसके लिए चीन, पाकिस्तान और तालिबान सरकार के बीच एक अहम त्रिपक्षीय समझौता हुआ है। इस समझौते के तहत CPEC को अफगानिस्तान तक ले जाया जाएगा, जिसका उद्देश्य अफगानिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था को सहारा देना और पूरे दक्षिण एशिया में संपर्क एवं व्यापार को बढ़ावा देना है।

हालांकि, यह नया चीन-पाकिस्तान-अफगानिस्तान गठजोड़ भारत के लिए कई स्तरों पर चिंता का विषय बन सकता है। CPEC का अफगानिस्तान तक पहुंचना न केवल क्षेत्रीय संतुलन को प्रभावित करेगा, बल्कि भारत की रणनीतिक और आर्थिक स्थिति पर भी असर डाल सकता है।

चीन और पाकिस्तान के बीच चल रही चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) परियोजना एक महत्वपूर्ण रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापार, परिवहन और ऊर्जा कनेक्टिविटी को मजबूत करना है। इस परियोजना के अंतर्गत सड़क, रेल और ऊर्जा से जुड़े बुनियादी ढांचे के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है, जिससे माल ढुलाई और आर्थिक सहयोग को गति मिल सके। यह परियोजना चीन को रणनीतिक बढ़त प्रदान करती है, जो भारत के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है।

अफगानिस्तान की पहली भागीदारी

अब एक नए त्रिपक्षीय समझौते के तहत अफगानिस्तान को पहली बार CPEC परियोजना में शामिल किया जा रहा है। इससे अफगानिस्तान के लिए व्यापार और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में नए अवसर पैदा होंगे। तालिबान सरकार के साथ हुए इस समझौते से देश में आधारभूत ढांचे में सुधार और रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि CPEC का यह विस्तार न केवल अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में व्यापारिक संबंधों और कनेक्टिविटी को भी नई दिशा देगा। अफगानिस्तान की भागीदारी इस क्षेत्र में आर्थिक विकास और स्थिरता की नई संभावनाएं खोल सकती है।

CPEC के अफगानिस्तान तक विस्तार से भारत पर संभावित प्रभाव

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) का विस्तार अब अफगानिस्तान तक होने जा रहा है, जो भारत के लिए कई स्तरों पर चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह विस्तार भारत के लिए कूटनीतिक, भू-राजनीतिक और रणनीतिक दृष्टि से गंभीर चिंता का विषय है। इसका सीधा असर भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा, प्रभाव और व्यापारिक रणनीति पर पड़ सकता है।

1. भू-राजनीतिक दबाव और भारत की क्षेत्रीय पकड़ में कमी

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अभिषेक श्रीवास्तव का कहना है कि CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार चीन और पाकिस्तान के प्रभाव को वहां और मजबूत करेगा। इससे भारत की अब तक बनी भूमिका को चुनौती मिल सकती है। भारत ने अफगानिस्तान में ज़रंज-दिलाराम सड़क, संसद भवन, और अस्पताल जैसी बड़ी विकास परियोजनाओं के जरिए वहां एक मजबूत उपस्थिति बनाई थी। लेकिन चीन-पाक गठबंधन के बढ़ते प्रभाव से भारत की ये उपलब्धियां दबाव में आ सकती हैं, और उसकी क्षेत्रीय पकड़ कमजोर हो सकती है।

2. रणनीतिक घेराबंदी का खतरा

चीन पहले से ही हंबनटोटा (श्रीलंका), ग्वादर (पाकिस्तान) और चिटगांव (बांग्लादेश) जैसे प्रमुख बंदरगाहों के जरिए भारत को चारों ओर से घेरने की कोशिश कर रहा है। अब CPEC के अफगानिस्तान तक विस्तार से चीन को भारत के पश्चिमी सीमांत पर भी रणनीतिक बढ़त मिल जाएगी। इसे भारत में “String of Pearls” यानी “मोतियों की माला” रणनीति के रूप में देखा जाता है, जो चीन की भारत को चारों ओर से घेरने की दीर्घकालिक योजना का हिस्सा मानी जाती है।

3. चीन-पाक-अफगान गठजोड़ से सुरक्षा चिंताएं

तालिबान की अगुवाई वाली अफगान सरकार के साथ CPEC का जुड़ाव भारत के लिए सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक हो सकता है, खासकर जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में। चीन, पाकिस्तान और अब अफगानिस्तान के बीच बढ़ते सहयोग से भारत की क्षेत्रीय स्थिति को चुनौती मिल सकती है। पाकिस्तान यह तर्क दे सकता है कि भारत CPEC जैसी परियोजनाओं में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं रखता, क्योंकि वह ‘गैर-स्थानीय पक्ष’ है।

4. चीन को अफगान संसाधनों पर सीधी पकड़

अफगानिस्तान प्राकृतिक संसाधनों, खासकर लिथियम और दुर्लभ खनिजों का खजाना माना जाता है। CPEC के जरिए चीन को इन संसाधनों तक सीधी, सुरक्षित और व्यवस्थित पहुंच मिल जाएगी। इसके विपरीत, भारत के लिए इन संसाधनों तक प्रतिस्पर्धी पहुंच कठिन हो जाएगी, जिससे उसकी तकनीकी और औद्योगिक योजनाओं पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

5. चाबहार पोर्ट और INSTC पर संभावित असर

भारत ने अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक संपर्क बढ़ाने के लिए ईरान के चाबहार बंदरगाह और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) जैसी रणनीतिक परियोजनाओं पर बड़ा दांव लगाया है। इन परियोजनाओं के माध्यम से भारत, पाकिस्तान को बाईपास करते हुए व्यापारिक और रणनीतिक पहुंच बनाना चाहता था।

लेकिन अब CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार चीन-पाक गठजोड़ को एक मजबूत विकल्प के रूप में सामने लाएगा, जिससे भारत की इन पहलों को गंभीर प्रतिस्पर्धा और राजनीतिक अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है। यह विस्तार भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक और रणनीतिक चुनौती बन सकता है।

CPEC के जरिए चीन और पाकिस्तान की बढ़ती नजदीकी न केवल भारत के प्रभाव क्षेत्र को सीमित कर सकती है, बल्कि क्षेत्र में भारत की स्वतंत्र रणनीतिक पहुंच को भी कमजोर कर सकती है। दीर्घकाल में यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय संतुलन के लिए गंभीर जोखिम उत्पन्न कर सकता है।

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