



पहलगाम में हुए हालिया चरमपंथी हमले के बाद भारत ने सुरक्षा के लिहाज़ से कई बड़े फ़ैसले लिए हैं। 23 अप्रैल को विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने एक संवाददाता सम्मेलन में इन निर्णयों की जानकारी दी।
इन अहम फ़ैसलों में से एक था — पंजाब स्थित ‘अटारी इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट’ को तत्काल प्रभाव से बंद करना। यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई ‘कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी’ (सीसीएस) की बैठक में लिया गया था। उल्लेखनीय है कि इस बैठक से ठीक एक दिन पहले जम्मू-कश्मीर के पहलगाम इलाके में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की जान गई थी।
सरकार ने यह भी साफ किया कि अटारी चेक पोस्ट के रास्ते भारत आए पाकिस्तानी नागरिकों को, यदि उनके दस्तावेज़ वैध हैं, तो एक मई से पहले वापस लौटना होगा।
भारत के इस क़दम के बाद पाकिस्तान ने भी प्रतिक्रिया दी। पाकिस्तान ने न सिर्फ़ भारत के साथ व्यापार पूरी तरह बंद करने का ऐलान किया, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि वह किसी तीसरे देश के रास्ते भी भारत से व्यापार नहीं करेगा।
अटारी चेक पोस्ट का महत्व
अटारी लैंड पोर्ट, जिसे भारत का पहला ‘इंटीग्रेटेड लैंड पोर्ट’ कहा जाता है, अमृतसर से महज 28 किलोमीटर दूर है। यह ज़मीन के रास्ते पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से व्यापार का एकमात्र प्रमुख माध्यम है। अफ़ग़ानिस्तान से आने वाला सामान भी इसी पोर्ट के ज़रिए भारत पहुंचता है।
हालांकि, भारत सरकार के आधिकारिक बयान में पाकिस्तान का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया गया, लेकिन व्यापार पर पड़ने वाले असर को देखते हुए दोनों देशों के व्यापारिक समुदायों में चिंता साफ़ झलकती है।
व्यापार पर संभावित असर
बीबीसी हिंदी ने इस घटनाक्रम पर पंजाब के कई व्यापारियों से बातचीत की। ज़मीन के रास्ते भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाला व्यापार सीमित है, लेकिन इससे जुड़े व्यापारी, ट्रांसपोर्टर और मज़दूरों पर इसका सीधा असर पड़ सकता है।
खास तौर पर अफ़ग़ानिस्तान से आने वाले उत्पादों — जैसे सूखे मेवे, फल, और कुछ औषधीय सामग्रियों — को लेकर अब अनिश्चितता पैदा हो गई है। क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान तक ज़मीन के रास्ते पहुँचने के लिए पाकिस्तान के रास्ते का इस्तेमाल किया जाता है।
निष्कर्ष
अटारी चेक पोस्ट बंद होने का असर दोनों देशों पर पड़ेगा, लेकिन भारत के लिए इसका प्रभाव सीमित रहेगा क्योंकि भारत-पाक व्यापार का कुल आकार भारत के कुल व्यापार का बहुत छोटा हिस्सा है। पाकिस्तान को अपेक्षाकृत ज़्यादा नुक़सान हो सकता है क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था पहले से ही दबाव में है और उसे व्यापार के कम अवसर मिल रहे हैं।
फिलहाल, दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव और गहराने के संकेत साफ़ हैं, और भविष्य में इस तनाव का असर अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ सकता है।