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गीता और नाट्यशास्त्र का UNESCO मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल होना देश के लिए गर्व की बात: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

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गीता और नाट्यशास्त्र का UNESCO मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल होना देश के लिए गर्व की बात: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गीता और नाट्यशास्त्र को UNESCO की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किए जाने पर खुशी जाहिर की है। उन्होंने इसे भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा की वैश्विक मान्यता बताया और कहा कि यह पूरे देश के लिए गर्व की बात है।

गीता और नाट्यशास्त्र: भारतीय सभ्यता की अमूल्य धरोहर

भगवद गीता, भारतीय धर्म, दर्शन और जीवन मूल्यों का सार है, जबकि नाट्यशास्त्र, भरतमुनि द्वारा रचित एक प्राचीन ग्रंथ है, जो भारतीय नाट्य कला, संगीत और नृत्य का आधार है। इन दोनों ग्रंथों को अब यूनेस्को की प्रतिष्ठित सूची में स्थान मिला है, जो वैश्विक स्तर पर सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए बनाई गई है।

प्रधानमंत्री मोदी का संदेश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस उपलब्धि पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा:

“भगवद गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में स्थान मिलना भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा की वैश्विक मान्यता है। यह हर भारतीय के लिए गौरव का क्षण है।”

UNESCO Memory of the World Register क्या है?

यह यूनेस्को की एक विशेष पहल है जिसका उद्देश्य दुनिया भर के महत्वपूर्ण दस्तावेजों, पांडुलिपियों और ग्रंथों को संरक्षित करना है। इनका चयन उनकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्ता के आधार पर किया जाता है।

इस मान्यता से भारत को क्या लाभ मिलेगा?

  1. वैश्विक पहचान में वृद्धि – गीता और नाट्यशास्त्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने से भारत की सांस्कृतिक धरोहरों को नई पहचान मिलेगी।

  2. शोध और अध्ययन को बढ़ावा – इन ग्रंथों पर अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में और अधिक रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा।

  3. पर्यटन को लाभ – भारत आने वाले सांस्कृतिक पर्यटकों की रुचि गीता, नाट्यशास्त्र और भारतीय परंपराओं में और बढ़ेगी।

  4. डिजिटल संरक्षण – इन ग्रंथों को अब और अधिक सुरक्षित रूप में डिजिटली संरक्षित किया जाएगा, जिससे आने वाली पीढ़ियों को भी यह धरोहर मिल सकेगी।

भारत की सांस्कृतिक शक्ति का प्रतीक

गीता और नाट्यशास्त्र दोनों ही न केवल धार्मिक और कलात्मक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह भारतीय जीवन शैली, नैतिक मूल्यों और विश्व दृष्टिकोण को भी दर्शाते हैं। इन्हें यूनेस्को द्वारा मान्यता मिलना भारत की “सांस्कृतिक सॉफ्ट पावर” को वैश्विक स्तर पर और मजबूत करता है।

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