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जब घायल मेजर होशियार सिंह ने थामी मशीनगन, मारे गए 89 पाकिस्तानी सैनिक, पढ़ें भारत-पाक जंग के दिलचस्प किस्से

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Major Hoshiar Singh Dahiya Birth Anniversary: साल 1971 में हुए बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में मेजर होशियर सिंह ने बसंतर में मोर्चा संभाला. घायल अवस्था में ही उन्होंने मशीनगन थाम ली. इससे कम्पनी के दूसरे सैनिकों का जोश और भी बढ़ गया. वे दुश्मनों पर टूट पड़े. उस दिन लड़ाई में पाकिस्तान के 89 जवान मारे गए. पाकिस्तानी सेना को मैदान छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. जयंती पर आइए जान लेते हैं मेजर होशियार सिंह दहिया के किस्से.

पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकवादी हमले के बाद एक बार फिर से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच चुका है. यहां तक कि दोनों देशों में युद्ध की आशंका जताई जा रही है. इससे पहले भी दोनों देशों के बीच चार युद्ध हो चुके हैं, जिसमें नापाक इरादों वाले पाकिस्तान को हमेशा मुंह की खानी पड़ी है. इन चार युद्धों में भारतीय सेनाओं के अफसरों और जवानों ने अदम्य साहस का परिचय दिया. इन्हीं में से एक थे मेजर होशियार सिंह दहिया.

साल 1971 में हुए बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में मेजर होशियर सिंह ने बसंतर में मोर्चा संभाला और जख्मी होने के बावजूद पाकिस्तानी सेना को मैदान छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. जयंती पर आइए जान लेते हैं मेजर होशियार सिंह दहिया के किस्से.

हरियाणा में हुआ था जन्म

पांच मई 1936 को मेजर होशियार सिंह दहिया का जन्म हरियाणा के सोनीपत स्थित एक गांव सिसाना में हुई था. स्थानीय हाईस्कूल में शुरुआती शिक्षा के बाद वह जाट सीनियर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ने पहुंचे. पढ़ने में होशियार होशियार सिंह खेलकूद में भी हमेशा आगे रहते थे. इसके कारण उनका चयन राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के लिए पंजाब की कंबाइंड बॉलीबाल टीम में हो गया. यही टीम बाद में राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बनी. टीम के कैप्टन होशियार सिंह ही थे. उनका एक मैच जाट रेजिमेंटल सेंटर के एक अफसर ने देखा तो होशियार सिंह से काफी प्रभावित हो गए. उनके कारण होशियार सिंह फौज की ओर आकर्षित हुए और साल 1957 में जाट रेजिमेंट का हिस्सा बने. फिर 3-ग्रेनेडियर्स में अफसर नियुक्त किए गए. होशियार सिंह ने साल 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में अहम भूमिका निभाई.

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में संभाला मोर्चा

यह साल 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध की बात है. बांग्लादेश की आजादी के लिए हुए इस युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान को एक अलग देश बांग्लादेश बनाया गया था. पाकिस्तान के साथ इस युद्ध को भारत को कई अलग-अलग मोर्चों पर लड़ना पड़ा था. इन्हीं में से एक मोर्चे का जिम्मा मेजर होशियार सिंह को सौंपा गया था. वह मोर्चा था शंकरगढ़ पठार में स्थित बसंतर का मोर्चा.

शकरगढ़ पठार का 900 किलोमीटर का इलाका बेहद संवदेनशील था. यही नहीं, यह इलाका प्राकृतिक बाधाओं से भरा था. दुश्मन ने यहां बारूदी सुरंगें भी बिछा रही थीं. 3 ग्रेनेडियर्स के कमांडिंग अफसर को 14 दिसम्बर 1971 को सुपवाल खाई पर हमले का आदेश दिया गया. तब 3 ग्रेनेडियर्स को जरवाल और लोहाल गांवों पर अपना कब्जा करना था. इस आदेश के बाद 15 दिसम्बर 1971 को 3 ग्रेनेडियर्स की दो कम्पनियां आगे बढ़ीं. इनमें से एक का नेतृत्व मेजर होशियार सिंह कर रहे थे. दोनों कम्पनियों ने दुश्मन की भारी गोलाबारी और बमबारी के बावजूद अपने-अपने मोर्चे पर हासिल कर ली. साथ ही 20 पाकिस्तानी सैनिकों को युद्ध बंदी बना लिया. उनसे भारी मात्रा में हथियार और गोलाबारूद बरामद किए.

घायल हुए मेजर होशियार सिंह

इस जीत के अगले ही दिन यानी 16 दिसम्बर 1971 को 3 ग्रेनेडियर्स बटालियन पर दुश्मनों ने जोरदार हमला कर दिया. दोनों ओर से घमासान युद्ध हुआ. जवाबी हमला कर पाकिस्तान अपना गंवाया क्षेत्र वापस पाने की कोशिश में था. हालांकि, दुश्मन को मात दे चुके भारतीय सैनिकों का मनोबल काफी बढ़ा था. ऐसे में भारतीय सैनिक पाकिस्तान के हमलों को लगातार नाकाम कर रहे थे. 17 दिसम्बर 1971 को सूर्योदय के साथ ही पाकिस्तान की एक बटालियन ने बम और गोलियों से मेजर होशियार सिंह की कम्पनी पर हमला बोल दिया.

हालांकि, मेजर होशियार सिंह डिगे नहीं और जवानों का हौसला बढ़ाते हुए दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देते रहे. इसमें पाकिस्तान के कई सैनिक ढेर हुए. मेजर होशियार सिंह भी दुश्मनों की भारी गोलीबारी की चपेट में आकर घायल हो गए.

पाकिस्तानी कमांडिंग अफसर को मार गिराया

घायल होने के बावजूद मेजर होशियार सिंह अपनी कम्पनी के सैनिकों का मनोबल बढाते रहे. घायल अवस्था में ही उन्होंने एक मीडियम मशीनगन थाम ली. इससे कम्पनी के दूसरे सैनिकों का जोश और भी बढ़ गया. वे दुश्मनों पर टूट पड़े. उस दिन लड़ाई में पाकिस्तान के 89 जवान मारे गए. इनमें पाकिस्तान का कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल मोहम्मद अकरम राजा भी था. पाकिस्तान की 35 फ्रंटियर फोर्स राइफल्स के इस अफसर को भारतीय सैनिकों ने अपने तीन अधिकारियों के साथ मिलकर ढेर किया था.

अदम्य साहस के लिए मिला परमवीर चक्र

युद्ध चल ही रहा था कि शाम छह बजे मेजर होशियार सिंह की कम्पनी को आदेश मिला कि दो घंटे बाद युद्ध विराम हो जाएगा. ऐसे में भारतीय सेना की कम्पनियां ज्यादा से ज्यादा तगड़े वार कर पाकिस्तानियों को युद्ध में धूल चटाने में लगी थीं. युद्ध विराम का जब तक समय आया, मेजर होशियार सिंह की 3 ग्रेनेडियर्स का एक अधिकारी और 32 फौजी अपना सर्वोच्च बलिदान दे चुके थे. तीन अधिकारी, चार जूनियर कमीशंड अधिकारी और 86 जवान घायल भी हुए थे. इसके बावजूद मेजर होशियार सिंह ने अपनी टीम के साथ पूरी शिद्दत से अपनी जिम्मेदारी निभाई.

युद्ध खत्म होने के बाद मेजर होशियार सिंह की कम्पनी को इस मोर्चे पर जीत का सारा श्रेय दिया गया. मेजर होशियार सिंह को कुशल नेतृत्व, असाधारण युद्ध कौशल और अदम्य साहस के लिए भारत सरकार ने सर्वोच्च भारतीय सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा. वह यह सम्मान पाने वाले पहले जीवित अधिकारी थे. कर्नल के रूप में रिटायर हुए मेजर होशियार सिंह दहिया ने छह दिसंबर 1998 को इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.

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